पुरानी पेंशन बहाली । एक चुनावी मुद्दा या चुनाव जीतने का षड्यंत्र ।
एक पार्टी ने घोषणा पत्र में पुरानी पेंशन को रखकर , अगर सरकार बनाने में असमर्थ हो गयी तो याद रखना आगे किसी भी पार्टी के घोषणा पत्र में पुरानी पेंशन का मुद्दा सामिल नही होगा।
देश के सबसे ज्यादा कर्मचारियों वाले राज्य में पुरानी पेंशन का मुद्दा उठाकर एक पार्टी असफल हो जाएगी तो छोटे-छोटे राज्यो में कर्मचारी पुरानी पेंशन केलिए संगठित होने का साहस नही करेगे।
किसी न्यूज़ चैनल में पुरानी पेंशन पर चर्चा नही होगी, पुरानी पेंशन किसी पार्टी के घोषणापत्र का मुद्दा नही बनेगा। कोई ops देने की बात कह रहा है , तो उसको एक मौका दो।
एक पार्टी ने घोषणा में शामिल किया है तो कर्मचारी का भी दायित्व बनता है कि उसका साथ पूर्ण समर्थन से दे । अगर ये पुरानी पेंशन बहाल नही करते है तो फिर 2024 और 2027 में चुनाव होगा। झूठे वादे करने वालो को मिट्टी में मिला देना।
बहुत से लोगो का कहना है 2005 में मुलायम ने new pension scheme (nps) क्यों लागू की और 2012-2017 तक अखिलेश ने ops क्यों नही लागू की??उस समय अधिकतर ops वाले कर्मचारियों का संगठन था, आज अधिकतर nps से पीड़ित कर्मचारियों का मजबूत संगठन है। जिन्हें ops की जरूरत है।
किसी पार्टी विशेष को पशन्द करना या ना करना तो आपका व्यक्तिगत अधिकार है, लेकिन स्वयं की पेंशन का ही विरोध करना तो मूर्खता की पराकाष्ठा है......
चुनाव तो कल 2024 2027 2029 में भी आएंगे लेकिन ops की जंग अबकी फीकी हो गयी तो फिर ops कभी नही आएगी।
इस उत्तर प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों की संख्या सबसे ज्यादा है और पुरानी पेंशन योजना से बंचित सबसे ज्यादा कर्मचारी भी उत्तर प्रदेश में है । अगर उत्तर प्रदेश के कर्मचारी अपनी मांगों के लिए वोट नही करेंगे तो फिर किसी भी प्रदेश में कोई पार्टी पुरानी पेंशन को मुद्दा नही बनाना चाहेगी ।
इसलिए परिणाम क्या होगा , उसकी चिंता किये बगैर अपनी मांगों के लिए जो पार्टी हमारा साथ दे रही है उसको वोट करे।
अगर सरकारी कर्मचारी,अधिकारी जो पिछले 18 सालो से अपनी मांगों के लिए संघर्षरत है वही कर्मचारी अगर सपा का समर्थन नही करेंगे तो फिर किस आधार पर विभिन्न संगठन अपनी मांगों के लिए सरकार के समक्ष अपनी बात रखेंग ।
बहुत से लोग कह रहे है कि पहले भी इनकी सरकार रही है तब क्यो नही पुरानी पेंशन को बहाल किये ।
जिस मुद्दे को दिखाकर जब पुरानी पेंशन बन्द की गई थी तो जबतक उस मुद्दे के खिलाफ लड़ाई नही होगी तब तक कोई भी पार्टी जनता की बात नही सुनेगी ।
जब राजनेता अपनी फायदे के लिए पार्टी बदल सकते है । एक दल छोड़कर दूसरे दल में जा सकते है तो हम कर्मचारी अपने भविष्य के लिए क्यो नही अपनी पार्टी बदल सकते है ।
एक बार पुरानी पेंशन बहाल करा लो।
फिर उसके बाद खूब राजनीति करना,अपनी पार्टी का समर्थन करना।
सवाल बुढ़ापे का है।
सवाल जीवन का है।
कालिदास न बनो
जिस डाल पर बैठे हो उसी को क्यो काट रहे हो..समझदारी दिखाओ |
अन्यथा समय बीत जाने पर सोचते रहोगे की कास थोड़ा और पहले लड़ लिए होते ।
अपने भविष्य के लिए अपना आज सही करिये।
धन्यवाद।